खगोलिकी: ब्रह्मांड, तारे, ब्लैक होल और सौर मंडल का रहस्य | Astronomy in hindi

 खगोलिकी (Astronomy)



ब्रह्मांड तथा अंतरिक्ष

  • समस्त ज्ञात एवं अज्ञात दिक्-काल तथा द्रव्य एवं ऊर्जा के समुच्चय को ब्रह्मांड कहा जाता है।
  • इसमें परमाणु, आकाशगंगाएँ, तारे, ग्रह, ब्लैक होल आदि सभी सम्मिलित हैं।
  • ब्रह्मांड में द्रव्य एवं ऊर्जा एक निश्चित व्यवस्था के अधीन होते हैं, जिन्हें वैज्ञानिक नियमों और गणितीय सूत्रों द्वारा समझा जा सकता है।
  • कॉसमॉस (Cosmos): वैज्ञानिक रूप से व्यवस्थित ब्रह्मांड को कॉसमॉस कहा जाता है।
  • अंतरिक्ष (Space): सागर तल से 100 किलोमीटर की ऊँचाई के बाद का क्षेत्र अंतरिक्ष कहलाता है।
  • कार्मन रेखा (Karman Line): पृथ्वी और अंतरिक्ष की सीमा निर्धारित करने वाली एक काल्पनिक रेखा।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति

सन 1920 के दशक में हब्बल महोदय ने आकाशगंगाओं के अध्ययन के उपरांत यह स्पष्ट किया कि ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है इस संकल्पना को आधार बनाते हुए बेल्जियम के पादरी जॉर्ज लैमित्री ने महा विस्फोट (Big-Bang) सिद्धांत प्रस्तुत किया इसके अनुसार लगभग 13.7 अरब वर्ष पहले समस्त ब्रह्मांड एक सूक्ष्म या बिंदुवत गोले में समाहित था, इसे विलक्षणता का बिंदु (Point of singularity) कहा गया इसी बिंदुवत गोले में होने वाले विस्फोट से वर्तमान का ब्रह्मांड अस्तित्व में आया तथा महा विस्फोट में मुक्त ऊर्जा के अधीन ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। हब्बल महोदय ने हब्बल स्थिरांक (Ho) द्वारा ब्रह्मांड के विस्तार की व्याख्या करने का प्रयास किया।

ब्रह्मांड के विस्तार के संदर्भ में निम्नलिखित दो साक्ष्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं -

1. अभिरक्त विस्थापन (Red Shift)

2. सूक्ष्म तरंगें (Microwaves)

ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स और भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस के अनुसार बिग- बैंग के समय एक मूल- भूत कण की उत्पति हुई, जिसने सभी वस्तुओं को द्रव्यमान (Mass) प्रदान किया जो गुरुत्व के साथ मिलकर वस्तुओ को भार प्रदान करता है जिससे इनमें स्थिरता आती है।

हिग्स-बोसोन की खोज के लिए फ्रांस और स्विट्जरलैण्ड की सीमा पर स्थित जिनेवा में भूमिगत सुरंग के अन्दर एक प्रयोग किया गया जिसे लार्ज हेड्रॉन कोलायडर (The Large Hadron Collider) कहा गया। यह एक कण त्वरक है, जिसमें प्रोट्रोनो की टक्कर द्वारा बिग-बैंग जैसी दशाएँ उत्पन्न की गई इस प्रयोग में सन् 2012 में हींग्स बोसोन कणों की खोज की गई, जिसे लियॉन लैडर मैन ने God Particle कहा। इस प्रकार हिग्स-बोसोन एक मूल-भूत कण है, जिससे सम्बद्ध क्षेत्र हिंग्स क्षेत्र कहलाता है। जो अन्य कणो और वस्तुओं में दद्रव्यमान के लिए उत्तरदायी माना जाता है।

  • बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory): बेल्जियम के पादरी जॉर्ज लैमित्री ने प्रस्तावित किया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक महा वि स्फोट से हुई।
  • हब्बल महोदय ने सिद्ध किया कि ब्रह्मांड निरंतर विस्तार कर रहा है।
  • हब्बल स्थिरांक (H₀): ब्रह्मांड के विस्तार की गति को मापने के लिए प्रयुक्त एक स्थिरांक।
  • ब्रह्मांड के विस्तार के दो प्रमुख साक्ष्य:
    1. अभिरक्त विस्थापन (Red Shift) - आकाशगंगाएँ हमसे दूर जा रही हैं।
    2. सूक्ष्म तरंगें (Microwaves) - ब्रह्मांडीय पृष्ठभूमि विकिरण।

हिग्स-बोसोन कण (Higgs Boson)

  • ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स और सत्येन्द्रनाथ बोस के अनुसार, बिग बैंग के समय एक मूलभूत कण की उत्पत्ति हुई, जो द्रव्यमान प्रदान करता है।
  • लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर (Large Hadron Collider - LHC): जिनेवा (स्विट्जरलैंड) में स्थित एक प्रयोगशाला, जहाँ 2012 में हिग्स-बोसोन कण खोजा गया।
  • God Particle: लियोन लैडर मैन ने हिग्स-बोसोन को यह नाम दिया।

ब्रह्मांड के विस्तार के सिद्धांत

स्फीति सिद्धात (Inflation Theory)

यह सिद्धान्त एलन गुथ द्वारा दिया गया, इसमें ब्रह्माण के विस्तार के सर्दभ में Dark matter और Dark Energy जैसी संकल्पनाओं का प्रयोग किया गया है। डार्क मेटर प्रकाश से अनुक्रिया नही करता अतः इसे देखा नही जा सकता। इसी प्रकार डार्क एनर्जी का अस्तित्व भी माना गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण में केवल 5% ही सामान्य द्रव्य और उससे सम्बधित ऊर्जा है। जिसे सापेक्षिकता के सिद्धात द्वारा सिद्ध किया जा सकता है, जबकि शेष 95% डार्क मेटर और डार्क एनर्जी है। जिसमे इनकी भागीदारी क्रमशः 27% और 68% है। डार्क मेटर जहां गुरुत्व के सहारे ब्रह्मांड के विस्तार को रोकता है। वही डार्क एनर्जी ब्रह्मांड के विस्तार को गति देती है। इसके अधीन ही ब्रह्मांड निस्तर विस्तारित हो रहा है। डार्क मेटर तथा डार्क एनर्जी के बारे में अधिक जानकारी एकत्रित करने के लिए Ice Cube नामक प्रयोग अन्टार्कटिक (दक्षिणी ध्रुव) पर किया जा रहा है। यह एक Particle Detector है जो न्यूट्रिनों का अध्ययन करेगा और इसमें सम्बद्ध टेलीस्कोप डार्क मेटर से सम्बंधित आँकड़े एकत्रित करेगा। यह भूमिगत रूप में स्थापित किया गया है। नासा ने यूक्लिड नामक अंतरिक्ष मिशन प्रक्षेपित किया गया है जिसमें टेलीस्कोप के सहारे ब्रह्मांड के विस्तार की दर को समझने और डार्क मेटर तथा डार्क एनर्जी को बेहतर समझने का प्रयास किया जायेगा। 

स्फीति सिद्धांत (Inflation Theory)

  • एलन गुथ द्वारा प्रतिपादित।
  • इसमें डार्क मैटर (Dark Matter) और डार्क एनर्जी (Dark Energy) की संकल्पनाएँ दी गईं।
  • डार्क मैटर: प्रकाश से अनुक्रिया नहीं करता, लेकिन ब्रह्मांड को स्थिर रखता है।
  • डार्क एनर्जी: ब्रह्मांड के विस्तार की गति को बढ़ाती है।
  • ब्रह्मांड में संरचना:
    • सामान्य द्रव्य: 5%
    • डार्क मैटर: 27%
    • डार्क एनर्जी: 68%
  • Ice Cube प्रयोग (अंटार्कटिका में स्थित): न्यूट्रिनो और डार्क मैटर का अध्ययन करता है।
  • नासा का यूक्लिड मिशन: डार्क मैटर और डार्क एनर्जी को समझने के लिए।

दोलन सिध्दांत (Pulsating Theory)

यह सिद्धान्त संडेजा महोदय द्वारा दिया गया इनके अनुसार विस्तारित होता हुआ ब्रह्माण अन्तत स्थिर हो जायेगा और एक ऐसी दशा आयेगी जब गुरुत्व के अधीन ब्रह्मांड पुनः संकुचित होने लगेगा और अन्ततः बिन्दुवत गोले अथवा विलक्षणता के बिन्दु में परिवर्तित हो जायेगा इस परिघटना को बिग क्रैच (Big-Crunch) कहा गया है।

इस प्रकार बिग-बैंग और बिग क्रन्च के अंतर्गत ब्रह्माण की उत्पति और समापन की  क्रिया निरन्तरता  में होती रहेगी। 

दोलन सिद्धांत (Pulsating Theory)

  • संडेजा महोदय द्वारा प्रतिपादित।
  • ब्रह्मांड पहले विस्तारित होगा, फिर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से पुनः संकुचित होगा।
  • इस संकुचन को बिग क्रंच (Big Crunch) कहा जाता है।

तारे (Stars)

बिग-बैंग के उपरान्त ऊर्जा का एक भाग द्रव्य में रुपान्तरित हुआ तथा गुरुत्वाकर्षण के अधीन बचे धूल व गैस के बादल निर्मित हुए, इन्ही बादलों को निकारिका (Nebula) कहा जाता है

गुरुत्व के अधीन निहारिका के संकुचित होने से केंद्रीय भाग में उच्च ताप और दाब के अन्तर्गत हाइ‌ड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम में परिवर्तित होने लगते हैं। संकुचित होती हुई निहारिका आदि तारा (Proto Star) कहलाती है

वह अवस्था जिसमें नाभिकीय संलयन के अधीन मुक्त ऊष्मा/ ऊर्जा गुरुत्व बल को संतुलित कर देती है जिससे प्रोटोस्टार का संकुचित होना रुक जाता है और यह साम्यावस्था में स्व- प्रकाशित पिण्ड का रूप धारण कर लेता है तारा (Star) कहलाता है। तारा वह स्वप्रकाशित पिण्ड होता है जिसमे गुरुत्व के अधीन प्लाज्मा अवस्था पाई जाती है।

ध्यातव्य रहे कि तारे का रंग उसकी सतह के तापमान को प्रदर्शित करता है। तारे की सतह का तापमान सामान्यतः 2800K से लेकर 28,000 K या इससे अधिक हो सकता है।

  • बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड में उपस्थित गैस और धूल के बादल निहारिका (Nebula) कहलाते हैं।
  • गुरुत्व बल के कारण संकुचित होकर तारा बनता है।
  • प्रोटोस्टार (Proto Star): संकुचित होता हुआ तारा।
  • मुख्य अनुक्रम तारा (Main Sequence Star): जब यह संतुलन में आ जाता है

तारों के रंग एवं तापमान

क्र.सं

तारे का रंग

तापमान (K)

उदाहरण

01

लाल

2800-3000

एन्टारेस (Antares)

02

पीला

6000

सूर्य (Sun)

03

नीला-सफेद

10,000

सिरियस (Sirius)

04

नीला

25,000-28,000

रीजल (Rigel)

विशाल तारे और उनका विकास

    सूर्य सदृश तारा (San Like star) ऐसे तारो का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.5 गुने तक होता है। ये तारे निम्नलिखित अवस्थाओं से गुजरते है-

a) रक्त दानव की अवस्था (Red Giant )- समय के साथ केन्द्र में हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तित हो जाते तथा हीलियम संलयित होकर कार्बन में परिवर्तित होते है तथा धीरे-धीरे केन्द्र से मुक्त होने वाली ऊर्जा के मान में कमी आती है तथा तारे की साम्यावस्था भंग हो जाती है और तारा पुनः संकुचित होने लगता है जबकि बाह्य भाग की गैसें फैलने लगती है, यह रक्त दानव की अवस्था होती है। भविष्य में सूर्य भी इसी अवस्था से गुजरेगा तथा यह पृथ्वी तक के ग्रहो को नष्ट कर सकता है।

b) ग्रहीय निहारिका अवस्था (planetary Nebula)- इस अवस्था में तारे का पदार्थ ठोस केन्द्र पर ध्वस्त हो जातें है। इसमे ठोस केन्द्र के चारो तरफ गैसीय आवरण विस्तारित रुप में पाया जाता है।

c) स्वेत वामन अवस्था (White dwarf)- इस अवस्था में गैसें पूरी तरह पृथक हो जाती है तथा स्वेत रंग का केंद्रीय ठोस भाग ही शेष रहता है। इसे श्वेत वामन कहते है। यह जीवाश्म तारा भी कहलाता है। यह अंततः समस्त ऊर्जा का परित्याग कर कृष्ण वामन (Black dwarf) में परिवर्तित हो जाता है

सर्वप्रथम चन्द्रशेखर महोदय ने स्पष्ट किया कि तारो का दुव्यमान 1.44 MS तक होता है वे अन्ततः श्वेत वामन और कृष्ण वामन में परिवर्तित होते हैं । ये कभी भी Black Holl (कृष्ण विवर) में परिवर्तित नहीं हो सकते है। इसे चन्द्रशेखर सीमा भी कहा जाता है

सूर्य-सदृश तारे (Sun-Like Stars): अंततः श्वेत वामन (White Dwarf) में परिवर्तित होते हैं।

विशाल तारा (Huge stars)- इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.5 गुने से लेकर 3 गुने तक होता है। यह Red supergiant (रक्त सुपर दानव) की अवस्था से गुजरता है। इसने होने वाला तीव्र विस्फोट सुपरनोवा विस्फोट कहलाता है। इस दौरान अत्यधिक तीव्र प्रकाश और प्रघाती तरंगे उत्पन्न होती है। वैज्ञानिको के अनुसार प्रघाती तरंगे भी ब्रह्माण के विस्तार की दर को बढ़ा देती है। सुपर नोवा विस्फोट के उपरांत तारे के केन्द्र में केवल न्यूट्रान संघटित अवस्था में पाये जाते हैं। अतः इसे न्यूट्रॉन तारा भी कहा जाता है। कुछ न्यूट्रॉन तारे अपने अक्ष पर घूमते हुए विद्युत चुम्बकीय तरंगे (विकिरण) निष्काषित करते है इन्हे Pulsar कहा जाता है, ध्यान देने योग्य है कि Pulsar, Pulsating star से अलग होते है। Pulsating star में प्रसार और सकुचन होता है जिससे इनकी चमक परिवर्तित होती रहती है। इसका उदाहरण सेफ़ीड तारा है।

    विशाल तारे (Huge Stars): सुपरनोवा विस्फोट के बाद न्यूट्रॉन तारे में बदलते हैं।

अतिविशाल तारे (Giant star)- इन तारो का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तीन गुने से अधिक होता है ये भी (Red Super Giant) और supernova विस्फोट से गुजरते है इसके उपरात इसके केंद्र में इतकी अधिक मात्रा मे पदार्थ शेष बचता है कि वह गुरत्व  के अधीन पुनः सिकुड़ने लगता है और अन्ततः अति उच्च गुरुत्व वाले क्षेत्र या पिण्ड में परिवर्तित हो जाता है जो अपने भीतर से प्रकाश को भी बाहर नहीं जाने देता अत इसे दुरबीन से भी नही देखा जा सकता है किन्तु इसके आस - पास की गतिविधियो के आधार पर इसकी अवस्थिति चिन्हित की जा सकती है।

    अतिविशाल तारे (Giant Stars): ब्लैक होल (Black Hole) में परिवर्तित होते हैं।

ब्लैक होल (Black Hole)

ब्लैक हॉल के बारे में सर्वप्रथम जॉन मिचेल और पियरे साइमन ने सूचनाएं प्रदान की जबकि इस सदर्भ में विश्वनीय सूचनाएं कार्ल स्वार्जचाइल्ड द्वारा दी गई इनके अनुसार प्रत्येक ब्लैक हॉल के संदर्भ में एक ऐसी सीमा होती है जहा प्रवेश करने पर कोई भी वस्तु पलायित नहीं हो सकती वह क्षेत्र Event Horizon कहलाता है ब्लैक हॉल अपने अनुमानित द्रव्यमान के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किये जाते है। । हाल में ही भारत ने X PoSat (X Ray Polarimeter Satellite) का प्रेक्षपण किया है जो न्यूट्रॉन  स्टार तथा ब्लैक होल के बारे में महत्वपूर्ण आंकडे एकत्रित करेगा।

  • अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रकाश भी नहीं निकल सकता।
  • इवेंट होराइजन (Event Horizon): ब्लैक होल की सीमा।
  • X-PoSat मिशन (भारत): न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल का अध्ययन।

गुरुत्वीय तरंगें (Gravitational Waves)

गुरुत्वीय तरंगे- जब दो न्यूट्रॉन तारे अथवा ब्लैक हॉल संलयित होते है अथवा एक दूसरे में समाहित होते है। तब दिक्-काल (Space- Time) में उत्पन्न हल चल गुरुत्वीय तरंग कहलाती है। इन तरंगो के अध्ययन के लिए (लेजर इन्टरफेरोमीटर ग्रेवीटेशनल वेव ऑब्जर्वेटोरी (LIGO) की स्थापना की जाती है।

जब किसी अति विशालकाय आकशीय पिंड द्वारा दिक् काल में वक्रता का निर्माण किया जाता है, तब इस क्षेत्र से गुजरने पर प्रकाश में मोड विचलन उत्पन्न होता है यह परिघटना Gravitational lensing कहलाती है और जिस पिंड द्वारा यह वक्रता उत्पन्न होती के वह पिण्ड Gravitational Lens कहलाता है।

  • ब दो न्यूट्रॉन तारे या ब्लैक होल टकराते हैं, तो स्पेस-टाइम में हलचल होती है।
  • इन तरंगों का अध्ययन LIGO वेधशाला में किया जाता है।

तारामण्डल (Constellation)- तारामण्डल से तात्पर्य तारों के समुच्य से है जो विभिन्न प्रकार की ज्यामितिय आकृतियां निर्मित करते हैं। अब तक 88 तारामण्डल निर्धारित किए गए है, जिनमें हाइड्रा तारामंडल सबसे बड़ा तारामण्डल है। भारतीय परम्परा में ताराम‌ण्डलो को राशियो और नक्षत्रों में विभाजित किया जाता है। सप्तऋषि तारामण्डल (Big Dipper Constellation) कहलाता है, इसके द्वारा ध्रुव तारे की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। 

आकाशगंगा (Galaxy)

आकाशगंगा (Galaxy)

गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन बधें तारो, धूल तथा गैसों के तंत्र को आकाशगंगा कहा जाता है। वैज्ञानिको के अनुसार ब्रह्मण में 1011 आकाश गंगाएं  है, और प्रत्येक आकाश गंगा मे 1011 तारे होते है।

आकाश गगाएं आकार में अनियमित सर्पिलाकार (Spiral) तथा दीर्घवृत्ताकार हो सकती है। हमारी आकाश गंगा milky way कहलाती है। यह सर्पिलाकार है, तथा इसकी दो वृहद घुर्णनशील भुजाएं हैं। सूर्य आकाश गंगा के Orion spur नामक क्षेत्र में स्थित है। आकाश गंगा के केन्द्र में एक उभार पाया जाता है जिसमें ब्लैक होल तथा Quasar (क्वासर) पाये जाते हैं। सूर्य आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है तथा एक परिक्रमा पूरी करने में 25 करोड वर्ष का समय लगता है जिसे ब्रह्माण वर्ष भी कहा जाता है। हमारी आकाश गंगा मिल्कीवे से सर्वाधिक पास की आकाश गंगा Andromeda (देवयानी) है।

  • तारों, गैसों और धूल से बनी विशाल संरचनाएँ।
  • ब्रह्मांड में लगभग 100 अरब आकाशगंगाएँ हैं।
  • मिल्की वे (Milky Way): हमारी आकाशगंगा।
  • एंड्रोमेडा गैलेक्सी: हमारी सबसे नजदीकी आकाशगंगा।
  • क्वासर (Quasar): अत्यधिक ऊर्जा उत्सर्जित करने वाली आकाशगंगाएँ।

सूर्य (Sun)



सूर्य मध्यम आकार का पीला तारा है।

इसमें पदार्थ की प्लाज्मा अवस्था पाई जाती है। 

इसकी पृथ्वी से औसत दूरी 15 करोड किमी है जिसे खगोलिय एकक (Astronomical Unit) कहते है। इस दूरी को तय करने में प्रकाश को 8 मिनट 20 सेकण्ड का समय लगता है। 

सूर्य की सरचना में निम्नलिखित परते निर्धारित की गई है।

 

सूर्य के केन्द्र अथवा कोर में तापमान लगभग 1.5 करोड केल्विन के आसपास होता है। यहाँ  सर्वाधिक मात्रा में  हाइड्रोजन के नाभिक  संलयन  प्रक्रिया में हीलियम में परिवर्तित हो रहे होते है।

कोर को घेरे हुए क्रमशः विकिरण और संवहन मेखलाएं होती है, सूर्य की सतह प्रकाश मण्डल कहलाती है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यही परत दिखाई पड़ती है इसका तापमान लगभग 6000K होता है।

प्रकाश मण्डल के उपरान्त सूर्य का वायुमण्डल क्रोमोस्फेपर या वर्णमण्डल पाया जाता है। इस क्षेत्र का तापमान प्रकाश मण्डल की तुलना में अधिक होता है। तथा बाह्यतम्  भाग कोरोना (Corona) तक तापमान बढ़कर  500000 K (50 लाख K) तक पहुंच जाता है। तापमान वृद्धि के कारण अभी भी अज्ञात है। इसे जानने के लिए नासा  द्वारा Parker solar probe (पार्कर सोलर प्रोब) नामक मिशन भेजा गया है। यह सन् 2025 में सूर्य के सर्वाधिक समीप से होकर गुजरेगा तथा कोरोना के बारें में आवश्यक सूचनाएं एकत्रित करेगा। भारत द्वारा प्रक्षेपित आदित्य L-1  मिशन भी कोरोना क्रोमोस्फेयर प्रकाश मण्डल और सौर पवनों के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्रित करेगा।

सूर्य की सतह से सामान्य अवस्था में आवेशित कणों का प्रवाह होता है जिन्हें सौर पवने कहा जाता है। सूर्य भी अपने अक्ष पर घुर्णन करता है, अतः प्लाज्मा की गति के कारण सूर्य के चुम्बकीय क्षेत्र की उत्पति होती है।

प्रति ग्यारह वर्षों के अतराल में सूर्य के अन्दर होने वाली प्रबल चुम्बकीय गतिविधियों के कारण सूर्य के चुम्वकीय ध्रुव उत्क्रमित होते है, इस दशा मे सूर्य की सतह पर कुछ स्थानो पर चुम्बकीय क्षेत्र इतना शसक्त हो जाता है कि सूर्य के आंतरिक भाग से मुक्त होने वाली ऊर्जा प्रकाश मण्डल पर नही पहुंच पाती है तथा यह क्षेत्र अपने आस पास की तुलना में ठण्डा हो जाता है, इस कारण सूर्य की सतह पर गहरे रंग के धब्बों का क्षेत्र दिखाई देते हैं, इसी गहरे रंग के क्षेत्र को सौर धब्बा (son spot) या सौर कलंक कहा जाता है, सौर धब्बो का तापमान लगभग 4500 K होता है।

कुछ समय के उपरान्त जब सौर धब्बे के क्षेत्र में चुम्बकीय क्षेत्र की दशाएं सामान्य हो जाती हैं, तब यहा से असमान्य रूप में 'X’ विकरण और वृदद मात्रा में आवेशित कण विस्फोट के साथ सौर मण्डल में प्रवाहित होते है, इस प्रबल प्रवाह को सौर जाला (Solar Flare) कहा जाता है।

  • सूर्य मध्यम आकार का पीला तारा है।
  • इसकी औसत दूरी पृथ्वी से 15 करोड़ किमी है।
  • इसके परतें:
    • कोर (Core) - तापमान 1.5 करोड़ K
    • प्रकाशमंडल (Photosphere) - 6000 K, सूर्य की दृश्यमान सतह।
    • वर्णमंडल (Chromospheres) - गैसीय परत।
    • कोरोना (Corona) - 5 लाख K तक तापमान।

सौर ज्वाला (Solar Flare) और प्रभाव

सौर ज्वाला के पृथ्वी पर निम्नलिखित दुष्परिणाम हो सकते है-

      i.        अंतरिक्ष यानो तथा उपग्रहो के इलेक्ट्रोनिक उपकारणों को क्षति पहुच सकती है, तथा वे अपनी कक्षा से विस्थापित हो सकते है।

    ii.        इनके कारण नौ परिवहन प्रणाली को क्षति पहुंचती है तथा संकेतो के प्राप्त करने में बाधा उत्तन्न होती है।

   iii.        ये वायुयानों के विभिन्न यंत्रो तथा संचार तंत्र को नुकसान पहुंचाते है।

   iv.        पावर ग्रिड को क्षति पहुंच सकती है जिससे विद्युत आपूर्ति में बाधा उत्सन्न होती है।

    v.        इसके द्वारा पृथ्वी के आयनमण्डल में अव्यवस्था उत्पन्न होती है तथा रेडियो प्रसारण के अवरुद्ध होने के कारण रेडियो ब्लॉक आउट की सम्भावना वढ जाती है।

   vi.        ये अन्तः समुद्री केवल को भी क्षति पहुंचा सकते है जिससे इन्टरनेट प्रसारण में बाधा सम्भव होती है।

  vii.        Aurora की तीव्रता बढ़ जाती है तथा निम्न अक्षाशों में भी अरोरा की घटना सम्भव होती हैं। 

  • विद्युत चुम्बकीय विस्फोट।
  • GPS और संचार प्रणाली प्रभावित हो सकती हैं।
  • पृथ्वी पर सौर तूफान (Solar Storm) और भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic Storm) का कारण बनते हैं।
    तीव्रता के आधार पर सौलर फ्लेयर को क्रमश X. M. और C श्रेणियों में विभाजित किया जाताहै।

यदि सूर्य के कोरोना से बडी मात्रा में आवेशित गैसे और चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी की ओर आता है तब इसे कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal mass Ejection) कहते हैं। CME सोलर फ्लेयर के साथ भी सम्भव होते है किन्तु प्राय ये solar flareके बिना पाये जातें है। Solar flare और CME के कारण पृथ्वी के वायुमंडल पर जो प्रभाव अनुभव किये जाते है उन्हे Solar Storm कहा जाता है। जबकि Solar flare और CME के कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में जो अव्यवस्था उत्पन्न होती है उसे भू – चुंबकीय तूफान (Geomagnetic Strom) कहा जाता है।

UPSC-स्तरीय प्रश्न

1. प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) के लिए MCQs

प्र.1: 'सैजिटेरियस A*' किस प्रकार की खगोलीय संरचना है? A) न्यूट्रॉन तारा
B) ब्लैक होल
C) सुपरनोवा अवशेष
D) ड्वार्फ ग्रह
उत्तर: B) ब्लैक होल

प्र.2: भारत के पहले खगोलीय ध्रुवीकरण वेधशाला (X-PoSat) का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
A) ब्रह्मांडीय किरणों का अध्ययन
B) ब्लैक होल का निरीक्षण
C) एक्स-रे स्रोतों की पोलारिमेट्री
D) सूर्य की गतिविधि का विश्लेषण
उत्तर: C) एक्स-रे स्रोतों की पोलारिमेट्री

2. मुख्य परीक्षा (Mains) के लिए प्रश्न:

  1. ब्रह्मांड के विकास में बिग बैंग सिद्धांत की भूमिका की समीक्षा करें। (250 शब्द)
  2. ब्लैक होल और न्यूट्रॉन तारों की संरचना और प्रभाव की तुलना करें। (200 शब्द)
  3. भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान की प्रगति का विश्लेषण करें। (250 शब्द)

4.  ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न सिद्धांतों पर चर्चा करें। क्या बिग बैंग सिद्धांत ही एकमात्र स्वीकृत सिद्धांत है? (250 शब्द)

5.  भारत में खगोलिकी के क्षेत्र में हुई हाल की प्रगति पर प्रकाश डालें और इसके वैज्ञानिक एवं रणनीतिक महत्व की व्याख्या करें। (150 शब्द)

निष्कर्ष

  • खगोलिकी ब्रह्मांड को समझने का विज्ञान है।
  • भारत के मिशन (चंद्रयान, मंगलयान, आदित्य-एल1) विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ा रहे हैं।

 

Study With Damodar

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