✍ उत्तर-मुगल काल: भारतीय इतिहास का संक्रमणकालीन दौर
उत्तर-मुगल काल (1707-1857) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु (1707) से लेकर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक फैला हुआ है। यह काल मुगल साम्राज्य के पतन, क्षेत्रीय शक्तियों के उदय और ब्रिटिश शासन की स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार करता है।
इस दौर में मुगलों की केंद्रीय सत्ता कमजोर होती गई, जिसके कारण मराठा, बंगाल, अवध, पंजाब और हैदराबाद जैसी शक्तियाँ उभरकर आईं। साथ ही, यूरोपीय शक्तियाँ—विशेषकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी—भारत में अपने प्रभाव को लगातार बढ़ाती गईं।
इस ब्लॉग में हम उत्तर-मुगल काल के प्रमुख घटनाक्रम, राजनीतिक परिदृश्य, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों और इस काल की ऐतिहासिक प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यदि आप UPSC, PCS या अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। आइए, इस महत्वपूर्ण युग को गहराई से समझते हैं! 🚀
उत्तर-मुगल काल के बाद के इतिहास को 'आधुनिक भारत' का इतिहास क्यों कहा जाता है?
उत्तर-मुगल काल (1707-1857) और उसके बाद की घटनाएँ भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुईं। इस काल के बाद का इतिहास "आधुनिक भारत का इतिहास" कहलाता है, क्योंकि यह एक नए युग की शुरुआत का संकेत देता है, जिसमें पारंपरिक राजशाही कमजोर पड़ी और औपनिवेशिक शासन के तहत आधुनिक प्रशासनिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन शुरू हुए।
उत्तर-मुगल काल के शासकों की सूची (1707-1857)
क्र. |
शासक
का नाम |
शासनकाल |
1 |
बहादुर शाह I |
1707-1712 |
2 |
जहांदार शाह |
1712-1713 |
3 |
फर्रुखसियर |
1713-1719 |
4 |
रफीउद्दरजात |
1719 (कुछ महीने) |
5 |
रफीउद्दौला |
1719 (कुछ महीने) |
6 |
मोहम्मद शाह (रंगीला) |
1719-1748 |
7 |
अहमद शाह |
1748-1754 |
8 |
आलमगीर II |
1754-1759 |
9 |
शाह आलम II |
1759-1806 |
10 |
अकबर II |
1806-1837 |
11 |
बहादुर शाह जफर |
1837-1857 |
मुगल साम्राज्य के पतन का कारण :- मुगल साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
i. कमजोर उत्तराधिकारी
ii.औरंगजेब के द्वारा धार्मिक
कट्टरता पर बल देने का प्रयास जैसे -जजिया कर लगाना, तीर्थयात्रा कर पुनः
प्रारम्भ करना।
iii. अकबर कालीन उदारनीतियों को
औरंगजेब ने कमजोर करने का प्रयास किया - जैसे अकबर के काल में जो राजपूतों का
महत्व था, औरंगजेब के काल में उस राजपूत नीति को महत्व नही दिया।
iv. ढक्कन की समस्यों में
ओरंगजेब द्वारा सर्वाधिक बल देने की कोशिश।
v. औरंगजेब के काल में मनसबदारी
व्यवस्था का संचालन बहुत सुदृढ़ता से नही किया जा रहा था।
vi. अत्यधिक युद्ध एवं अभियान
के कारण राजकोष पर वित्तीय बोझ बढ़ता गया, जिस कारण कृषक वर्ग को अपनी
क्षमता से अधिक कर देने के लिए बाध्य होना पड़ा। परिणामस्वरूप स्थानीय विद्रोह की
समस्या बढ गई।
vii.औरंगजेब के द्वारा मराठों
के साथ निरन्तर संघर्ष।
औरंगजेब के पुत्र
1.मुअज्जम - काबुल का सुबेदार
2. आजम - गुजरात का सूबेदार
3. कामबक्श - वीजापुर का
सूबेदार
4. मो० सुल्तान
5. अकबर
कुछ इतिहासकार ऐसा बताते है कि औरंगजेब के 6 पुत्र थे,
लेकिन छठवें
पुत्र को औरंगजेब ने कैद में डालवा दिया।
अकबर
मारवाड़ के शासक महाराजा जसवंत सिंह की 1678 मे मुत्यु हो गई। उनका कोई
उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण मुगल शासक औरंगजेब मारवाड को मुगल साम्राज्य में
मिलाना चाहता था। लेकिन मारवाड दरबार के लोगों ने जसवंत सिंह के नवजात बच्चे को
उत्तराधिकारी बनाकर मारवाड को मुगल साम्राज्य में नही मिलाने के लिए प्रयास किया।
इस प्रयास में दुर्गादास राठौड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंततः औरंगजेब
ने अपने बेटे अकबर को मारवाड़ को नियंत्रित करने के लिए सैन्य अभियान का नेतृत्व
सौपा था, लेकिन अकबर ओरंगजेब के विरुद्ध हो गया,
जान बचाकर वह
मराठों के यहां
(राजराम, शभांजी)शरण लिया। अंततः वह ईरान चला गया,
जहाँ उसकी
मृत्यु हो गई।
*
औरंगजेब की
मृत्यु के समय मुअज्जम काबुल का सुवेदार, आजम -गुजरात का सूबेदार तथा
कामबख्श बीजापुर का सुबेदार था।
⇒
मुअज्जम ने आजम
को 18 जून 1707 को आगरा के पास जजऊ नामक स्थान पर पराजित किया। इस तरह
मुअज्ज़म 65 वर्ष की आयु में बहादुर शाह-I या शाद आलम -I
के नाम से औरंगजेब
के उत्तराधिकारी के रूप मे गद्दी पर बैठा।
⇒
बहादुर शाह-I
ने 13 जनवरी 1709 को हैदराबाद के पास
बामबख्श को परजित कर उसकी हत्या कर दी।.
नोट :- कुछ इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब ने मरने से पहले अपने
साम्राज्य का विभाजन अपने तीनो बेटों में एक वसीयत के माध्यम से कर दिया था।
⇒ बहादुर शाह –I
ने शान्ति
प्रियता की नीति अपनाई।
⇒
बहादुर शाह –I
को शाहे -ए -
बेखवर भी कहा जाता है। (खफी खान के द्वारा कहा गया पुस्तक मुन्तखाब-उल-लुबाब)
बहादुर शाह-I ने राजपूतों के साथ मेलमिलाप की नीति अपनाई। बहादुर शाह-I के समय -
1.जयसिंह- आमेर (जयपुर) -
मालवा की सुबेदार
2.अजीत सिंह - मारवाड़
(गुजरात की सूबेदारी)
3. अमर सिंह - मेवाड़
जयसिंह मालवा के सुबेदार थे जबकि अजीत सिंह गुजरात के सुवेदार थे।
बहादुर शाह - I ने जयसिंह को आमेर और अजीत सिंह को मारवाड़ का राज्य वापस
कर दिया। लेकिन उनकी सूबेदारी वापस नही की।
मराठा
शिवाजी दो पुत्र
- शंभाजी (1689) ⇒ साहू (सतारा से शासन) (बहादुर शाह –I की कैद में)
- राजाराम (1700) ⇒पत्नी ताराबाई (कोल्हापुर से शासन) शिवाजी II
- बहादुर शाह -I मराठों के साथ ऊपरी तौर पर मेल मिलाय की नीति अपनाई उसने साहू को कैद से मुक्त कर दिया लेकिन उसने पूर्णतः मराठों का शासक नहीं माना।
- साहू को कैद से मुक्त करने में सर्वाधिक रुचि आजम ने दिखाई।
चौथ - जब मराठे किसी नये क्षेत्र को जीतने के बाद भी अपने साम्राज्य में नही
मिलाते थे, और वहाँ पूर्ण राजस्व का एक चौथाई भाग प्राप्त करते थे तो
उसे चौथ कहा जाता था।
सरदेशमुखी - जब मराठे नये क्षेत्र को जीतने के बाद उसे अपने साम्राज्य में
मिला लेते थे, तो वहां राजस्व का दसवां भाग प्राप्त करते थे जिसे
सरदेशमुखी कहा जाता था।
- बहादुर शाह – I ने साहू को सरदेशमुखी का अधिकार दे दिया लेकिन चोथ का अधिकार नहीं दिया।
सिक्ख
10 वे गुरु – गुरुगोविन्द सिंह
शिष्य - बन्दा बहादुर
वास्तविक नाम - लक्ष्मण दास (डोंगरा राजपूत)
- सिक्खों के साथ बहादुर शाह-I ने पुरुस्कार एवं दण्ड की नीति अपनाई, बहादुर शाह - I गुरु गोविन्द के साथ संधि किया और मनसब प्रदान किया लेकिन 07 Oct, 1708 को गुरु गोविन्द सिंह की नान्देड (महाराष्ट्र) में पठानों ने हत्या कर दी। उनकी मृत्यु के बाद उनके शिष्य बन्दा बहादुर के साथ बहादुर शाह-I कड़ा व्यवहार अपनाया।
- बन्दा बहादुर डोगरा राजपूत थे तथा इनका वास्तविक नाम लक्षण दास था। गुरु गोविन्द सिंह इन्हें बन्दा/सेवक की उपाधी दिए थे। सिक्खों के लिए इन्होने मुगलों से संघर्ष किया। यही कारण है कि इन्हें लोग बन्दा बहादुर कहते थे।
- समद खान का पुत्र जकारिया खान जब पंजाब पर अत्याचार करने लगा तो बन्दा बहादुर के नेतृत्व में पंजाब में विद्रोह हो गया, अन्ततः गुरुदासपुर के पास बन्दा बहादुर को पकड लिया गया और 1716 में (फर्कखशियर के काल में) दिल्ली में बन्दा बहादुर को मृत्यु दण्ड दे दिया गया।
जाट
1. गोकुल
2. राजाराम
3.चूड़ामन + बदन सिंह
4. सूरजमल - जाटों का प्लेटो/
अफलातून
नोट :- प्लेटो
के अनुसार मानव व्यक्तिव के तीन आतंरिक तत्व होते है –
1. बौद्धिक (बुद्धि)
2.
ऊर्जयस्वी (बलशाली)
3.
संतृष्णा
Ø
बहादुर शाह I ने जाट नेता चुडामन + बदन सिंह के साथ मेल मिलाप की नीति
अपनाई। चूड़ामन ने बंदा बहादुर के विरुद्ध अभियान में मुगलों का साथ दिया था।
Ø
बुन्देला राजा छत्रशाल के साथ बहादुर शाह-I ने मेलमिलाप की नीति अपनाई।
Ø
बहादुर शाह - I के शासन काल के दौरान बडे स्तर पर जागीरें बांटी गई।
कर्मचारियों को पदौनती दी गई। जिस कारण वित्तीय व्यवस्था के साथ प्रशासन की
गुणवत्ता में गिरावट आई, परिणाम स्वरुप दरबार में गुटबन्दी बढ़ने लगी।
Ø
फरवरी 1712 में बहादुर शाह की मृत्यु हो गई।
सिड़वी ओवन के अनुसार बहादुर शाह I - अंतिम मुगल बादशाह है,
जिसके विषय में
कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते है।
बहादुर शाह - I के चार पुत्र थे।
1. जहांदार शाह
2. अजीमुस्सान
3.रफ़ीउस्मान
4.जहानशाह
इतिहासकारों ने लिखा है कि बहादुर शाह-I के मरने के बाद उसके चारों
बेटों में सत्ता के लिए इस कदर संघर्ष होने लगा कि बहादुर शाह - I
का शव एक महीने
तक दफनाया नहीं गया।
मुग़ल दरबार में गुटबन्दी- मुगल दरबार मे मुख्यरूप से तीन गुट थे-
- ईरानी गुट: - जुल्फीकार खान
- सैय्यद गुट (i) हुसैन अली पटना का गर्वनर (ii) अब्दुल्ला खान -इलाहाबाद का गर्वनर
- तुरानी गुट - चिनक्लिच खान / आजम खान /निजाम-उल-मुल्क / निजाम हैदराबाद
जहाँदार शाह
बहादुर शाह – I की मृत्यु के बाद उसके चारों बेटों
में सत्ता के लिए संघर्ष हुआ जिसमें इरानी गुट/ दल के नेता जुल्फिकार खान की सहायता से जहांदार शाह शासक बनने में सफल हुआ। जहांदार शाह ने
जुल्फीकार खान को अपना वजीर (वित्त मंत्री/ प्रधानमंत्री) घोषित किया ।
जजिया कर - गैर मुसलमानों से लिया जाने वाला सम्पति कर
- जकात कर - धार्मिक कर मुसलमानों पर लागू आय का 2.5 % न्यूनतम
खुम्शकर - युद्ध में लूटी गई सम्पति का बटवारा
4/5 सेना तथा 1/5 राजकोष में जमा
खराज कर - गैर मुस्लिम किसानों से लिया जाने वाला भू राजस्व कर
- जहाँदार के समय जजिया और तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया गया।
- जहांदार शाह ने जयसिंह को मालवा की सुबेदारी और मिर्जा राजा भी उपाधी दी गई, जबकि अजीत सिंह को गुजरात की सुबेदारी और महाराज की उपाधी दी गई।
- जहांदार शाह ने मराठों को सरदेशमुखी के साथ -साथ चौथ का भी अधिकार दे दिया लेकिन उसकी वसूली मुगल अधिकारी करेंगे।
- जुल्फिकार खान ने जागीरों के वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया और इजारा व्यवस्था (ठेकेदारी) की शुरुआत की, इसमें भू राजस्व की वसूली नीलामी पद्धति से की जाती थी।
- जहांदार शाह पर लाल कुँवर (लाल कुमारी) नामक महिला का अत्यधिक प्रभाव था।
- खफी खान के अनुमार जहांदार शाह का काल गायक नर्तक संगीतज्ञ आदि के लिए अच्छा काल था।
- जहांदार शाह का 10 माह का शासन काल रहा।.
फर्रूखशियर (1713-19) –
- यह बहादुर शाह-I के बेटे अजीमुस्सान का पुत्र था।
- सैय्यद गुट के हुसैन अली और अब्दुल्ला खान ने जहाँदार शाह की हत्या कर फर्रूखशियर को दिल्ली की गद्दी पर
स्थापित किया।
- अजीमुस्सान ने हुसैन अली को पटना का और अब्दुल्ला खान को इलाबाद का गर्वनर
बनाने में विशेष भूमिका निभाई थी।
- सैय्यद बन्दुओं को किंग मेकर कहा जाता है, क्योकि इन लोगों ने चार
मुगल व्यक्तियो को मुगल गद्दी पर स्थापित किया था-फर्कखशियर, रफी उद्दरजात, रफी उद्दौला और मौहम्मद शाह रंगीला
Øफर्रुखशियर ने हुसैन अली को
मीर बक्सी (सेनापती) और अब्दुल्ला खान को वजीर (वित्तमंत्री) घोषित किया।
Ø जयसिह को सवाई की उपाधी दी
गई इस तरह जयसिंह को, सवाई मिर्जा राजा जयसिह कहा जाने लगा।
Ø फर्रुखशियर ने भी जजिया और
तीर्थयात्रा कर को समाप्त किया।( इससे पहले इन दोनों कारों को किसने दुबारा लगाया इस पर इतिहास
मौन है)
Ø जहाँदार शाह ने मराठो को
सरदेशमुखी के साथ-साथ चौथ भी प्रदान किया था लेकिन फर्रुखशियर ने 6 मुगल प्रांत (दक्कन के पास)
मराठो को प्रदान किये, जिसकी चौथ एवं सरदेशमुखी मराठे ही वसूलेंगे। जिसके बदलने में
शाहू ने मुगलों को 15000 घुडसवारों के साथ समर्थन देने का वचन दिया।
Ø गुरुदासपुर में बन्दा
वहादुर को पकडा गया था और दिल्ली में 1716 में मृत्यु दण्ड दिया गया
था।
Ø 1717 में फर्रुखशियर ने अग्रेजो को 3000 रु के बदले कर मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। फर्रुखशियर सैय्यद बन्दुओं के बढ़ते प्रभाव के कारण उनकी हत्या करना चाहता था लेकिन सैयद बन्दुओ ने मराठों (बालाजी विश्वनाथ) की सहायता से 1719 में फर्रुखशियर की हत्या कर दी गई।
रफी उद्दरजात-
Ø
यह रफीउस्मान (बहादुर शाह प्रथम पुत्र) का पुत्र था।
Ø
इसके समय मराठे के साथ हुए समझौते को
मान्यता दी गई। फर्रुखशियर के काल में बालाजी विश्वनाथ के साथ हुआ था।
Ø अधिक शराब पीने के कारण इसकी मृत्यु हो गई।
Ø
इसी के काल में औरंगजेब के बेटे अकबर के पुत्र निकुशिपर ने विद्रोह कर दिया ।
आगरा के किले पर कब्जा किया एवं स्वयं को मुगल सम्राट
घोषित किपा
(प्रयास असफल रहा)
रफी उद्दौला-
Ø यह रफी उस्मान का पुत्र था,
अफीम का नशा करता था। पेचिस की बीमारी से मृत्यु हुई। ये अपने को शाहजहां - Ⅱ घोषित किया।
Ø रफी उद्दौला की मुत्यु के
बाद मारवाड के शासक अजीत सिंह जिन्होंने अपनी पुत्री इन्द्र कवर का विवाह फर्रुखशियर
से किया था को मुगल हरम से वापस ले गया और पुनः हिन्दु धर्म स्वीकार करवा दिया।
मोहम्मद शाह रंगीला (1710-48)
जहान शाह का पुत्र
सैय्यद बंधु के सहयोग से गद्दी पर बैठा
वास्तविक नाम - रोशन अख्तर
Ø यह बहादुर शाह-I
के सबसे छोटे
बेटे जहानशाह का पुत्र था।
Ø इसका वास्तविक नाम रोशन
अख्तर था।
Ø सैय्यद बंधु (हुसैन
अली और अब्दुल खान) के सहयोग से गद्दी पर बैठा
Ø सैय्यद बंधुयों अत्यधिक
प्रभाव बढ़ जाने के कारण तुरानी दल के नेता चिन क्लिन खान और उसके सहयोगी अमीन खान
की भूमिका से हुसैन अलि और अब्दुल्ला खान को नियत्रित एवं हत्या की गई।
Ø अक्टूबर,
1720 में हुसैन अली
की हत्या की गई। हुसैन अली को मारने के लिए एत्मा उद्दौला,
हैदर खान और
शहादत खान ने षड्यन्त्र रचा था। हैदर खान ने हुसैन अली की चाकू से हत्या की थी।
Ø अब्दुल्ला खान ने जब मो०
इब्राहिम को सुगल शासक बनाने का असफल प्रयास किया तो उसे पकड कर नम्बबर 1920
में जेल में डाल
दिया गया, जहा उसकी हत्या कर दी गई।
Ø 1722
में चिन क्लिच
खान को मुगल साम्राज्य का वजीर घोषित किया गया। लेकिन दरबार की अव्यवस्था को देखते
हुए निजाम उल मुल्क (चीन क्लिच खान) 1724 में शिकार खेलने के बहाने दक्कन
गया और वहाँ पर उसने एक स्वतंत्र हैदराबाद
रियासत की स्थापना की। यही से मुगलों का वास्तविक विखराव प्रारम्भ हुया, जैसे
हैदराबाद में निजाम उल मुल्क ने किया, बंगाल में मुर्शीद अली खान
ने किया, अवध में सआदत खान ने किया और भरतपुर जाट राज्य की स्वतंत्र
स्थापना बदन सिंह एवं चूडामन जाट ने किया था।
Ø इस समय मुगल इतने कमजोर हो
गए कि मार्च 1737 में मराठा पेशवा बाजीराव -I ने मात्र 500 घुडसवारों के साथ दिल्ली पर
चढाई कर दी।
नादिर शाह का हमला
Ø
1939 में मोहम्मद शाह रंगीला के काल में ईरान के शासक नादिर शाह
ने हमला किया था, नादिर शाह अपने आर्थिक अंसतुलन को ठीक करने के लिए यह आक्रमण
किया था।
Ø
फरवरी 1739 में करनाल की लडाई में मुगलों की हार हुई इस युद्ध का नेतृल
खान-ए-दौरा ने किया था। तीन घन्टे के युद्ध के दौरान खान-ए-दौरा (मीर बक्शी) मारा
गया और सआदत खान को बन्दी बना लिया गया।
Ø
निजाम उल मुल्क को वार्ता के लिए भेजा गया, वार्ता के परिणाम स्वरूप
नादिर शाह ने करनाल से ही 50 लाख रुपये लेकर वापस जाने
की योजना बना ली।
Ø
लेकिन सआदत खान (बजीर) ने 2 करोड रुपये का लालच देकर नादिर शाह को दिल्ली पर
आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि सआदत खान स्वयं मीर
बक्सी बनना चहाता था और चिन क्लिन खान को नीचा दिखाना चाहाता था। दिल्ली पर हमले के दौरान लगभग 70
करोड की संपत्ति
तख्त-ए-ताउस (मयूर सिंहासन) एवं कोहीनूर हीरा नादिर शाह ने प्राप्त किया। सआदत खान
के षड्यंत्र की पोल खुल जाने पर उसने आत्म हत्या कर ली।
अहमद शाह (1748-54) (मा का नाम कुदसिया बेगम)
Ø यह मो० शाह रंगीला का पुत्र
था। अहमदशाह अब्दाली (जो कि नादिरशाह का उत्तराधिकारी था) ने 1748 से 1767 के बीच 7 बार आक्रमण किया।
( कुछ इतिहासकारों के अनुमार अब्दाली का 1748 में आक्रमण मो० शाह रंगीला
के शासन के अतिम दिनों में हुआ था जबकि
अधिकांश इतिहासकार मो० शाह रंगीला के बेटे अहमद शाह के काल में मानते है।
Ø अब्दाली का प्रथम आक्रमण पंजाब के विरुद्ध था जबकि अतिम हमला सिक्खों के विरुद्ध था। Ø अहमद शाह बहुत आलसी था तलवार चलाने में भी निष्क्रियता दिखाता था।
आलमगीर-II
(1754-59)
Ø यह जहांदार शाह का पुत्र
था।
Ø वास्तविक सत्ता - गाजीउद्दीन
(इमाद-उल-मुल्क) (वजीर), जाविता खान (रोहिल सरदार) और उसके बेटे अब्दुल कादिर
वास्तविक सत्ता का संचालन कर रहे थे।
Ø 1759
में जाविता खान की
विशेष भूमिका के कारण आलमगीर-Ⅱ की हत्या हुई।
शाह आलम-II (1759-1806) - बिना मुकुट का बादशाह
Ø इसका वास्तविक नाम – अली
गौहर था।
Ø यह अधिकतर दिल्ली से बाहर
ही रहा।
Ø शाह आलम- II, आलम गीर का पुत्र था। इसका वास्तविक नाम अली
गौहर था। इसे उत्तर मुगल इतिहास में बिना
मुकुट का बादशाह कहा गया।
Ø शाह आलम- II अपने शासन के आरम्भिक दौर में अपनी
राजधानी से दूर ही रहता था। क्योकि वह अपने वजीर से भयभीत रहता था।
Ø शाह आलम- II ने पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों के
विरुद्ध अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया था।
Ø 1764 के बक्सर के युद्ध में शाह
आलम-II ने अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध में भूमिका निभाई थी। 1765 में इस्ट इण्डिया कम्पनी
द्वारा इलाहाबाद की संधि का एक भाग शाह आलम- II के साथ भी किया गया था।
Ø 1765 से 1772 तक शाह आलम- II इलाहाबाद में कम्पनी का पेशन धारक बनकर
रहा (नज़रबन्द रखा गया)
Ø महादजी सिधिया ने शाह आलम- II को 1772 में दिल्ली में पुनः
स्थापित किया। 1803 में दिल्ली पर अंग्रेजो का नियंत्रण स्थापित हुआ।
अकबर-II
(1806-37)
Ø यह शाह आलम- II का पुत्र था।
Ø इसने राजा राम मोहन राय को
राजा की उपाधी दी थी। राम मोहन राय, अकबर-II का पेशन बढवाने लन्दन गये
जहाँ बिस्टल में उनकी मृत्यु हो गई।
Ø अकबर-II
के समय मुगलों
के सिक्को ढलने बन्द हो गये।
बहादुर शाह जफर /बहादुर शाह-II (1837-57)-
Ø बहादुर शाह जफर अकबर-II
के पुत्र थे
इनके काल में 1857 का विद्धोह हुआ, तथा ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया ने मुगलों
का शासन समाप्त करने का निर्णय लिया और भारत के शासन की बागडोर महारानी के हाथ में
स्थानान्तरित हो गई। यही से भारत को ब्रिट्रिश साम्राज्य का अंग एवं महारानी
विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया।
Ø बहादुर शाह जफर को अंतिम मुगल बादशाह कहा गया।
Ø सन् 1857 विद्रोह के बाद उन्हे रंगून निर्वासित कर
दिया जहाँ 1862 में उनकी मृत्यु हो गयी।
नादिरशाह (1736-1747)
Ø
1736 से 1747 तक नादिर शाह या नादिर
कुली बेग ने ईरान पर शासन किया। उसने अफशारी वंश की स्थापना की थी। नादिर शाह का उदय उस समय हुआ था । जब ईरान में पश्चिम से
उस्मानी (आतोमन साम्राज) का आक्रमण हो रहा था। पूर्व से अफगानों ने सफावी राजधानी इस्फहान पर अधिकार करना चहाते थे ।
उत्तर से रूस भी फारस में अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
नादिर शाह से पहले फारस की गद्दी पर सफावियों का शासन था। लेकिन सफावी शासक
सुल्तान हुसैन और उनके बेटे तहमास्प द्वारा जब शासन का सही संचालन नहीं किया जा
सका तो ऐसी परिस्थिती में नादिर शाह इरान की गद्दी पर बैठा।
नादिर शाह के भारत पर आक्रमण का कारण
- उत्तरवर्ती मुगलों की कमजोरी
- उत्तर पश्चिम सीमा पर सुरक्षा का अभाव
- पंजाब की स्थिती
- नादिर शाह के विद्रोही अफगानों को मुगल शासक द्वारा शरण देना
- नादिरशाह की महत्वाकांक्षा
- नादिर शाह के दूतों को भारत में रोकना
- धन की लालसा
- काफिरों को दण्डित करना
- मुगल अमीरो (अधिकारियों) का षणयंत्र
नादिर शाह 1736 में फारस का शासक घोषित हुआ था कुछ विद्धान ऐसा मत प्रस्तुत
करते है कि वह एक गडरिया का बेटा था और तत्कालीन ईरान /फारस में अपनी योग्यता के
बल पर शासक का पद प्राप्त करने में सफल रहा था। भारत पर नादिर शाह के आक्रमण के कई
कारण माने जाते हैं -
1. उत्तरवर्ती
मुगलों की कमजोरी - जिस समय नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया था (1739) उस समय मुगलों की केंद्रीय
सत्ता लगातार कमजोर हो रही थी। कुछ प्रान्त पत्तियो (सूबेदारों) ने गुगलों की
कमजोरी का लाभ उठाकर अपने स्वतंत्र राज्य भी स्थापित कर लिए थे। वे नाम मात्र के
ही अधीनता स्वीकार करते थे। जैसे वंगाल, अवध आदि। इसके साथ-साथ भारत
की कुछ ऐसी रियासतें भी थी जो मुगलों को सीधे सीधे चुनौतियां दे रही थी। जैसे
मराठा जाट आदि।
2. उत्तर पश्चिम
सीमा पर सुरक्षा का अभाव- शाहजाहँ के समय में कंदार
पर फारस के अधिकार के बाद उत्तरी पश्चिम सीमा असुरक्षित हो गई थी। औरंगजेब के उत्तराधिकारियों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं
दिया उस समय काबुल का सूबेदार नासिर खान काबुल छोडकर पेशावर में निवास कर रहा था।
3. पंजाब की स्थिती-
पंजाब का
सुबेदार जकारिया खान का अन्य अमीर विरोध करते थे उसने फारस के खतरे से सचेत रहने
की चेतावनी दी थी। लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई।
4. नादिर शाह के
विद्रोही अफगानों को मुगल शासक द्वारा शरण देना- फारस के शासक नादिर शाह ने मुगल बादशाह मो० शाह रंगीला को यह सन्देश भिजवाया था कि
कन्दार से भागे हुए अफगानों को उसके साम्राज्य में प्रवेश न करने दे लेकिन मो० शाह
रंगीला ने इस और ध्यान नही दिया इसलिए कुद्र होकर नादिर शाह खेवर दर्रा पार किया
और लाहोर की और बढ़ा। जब सकट दिल्ली पर आ गया तब मुगलों ने उसे रोकने के लिए सेना
भेजी।
5. नादिर शाह की महत्वाकांक्षा-
नादिर शाह स्वयं
को योग्य सेनापति और ईरान के इतिहास में सफावी वंश की तुलना में अफसरी वंश के
योगदान को गौरवान्चित अवस्था में पहुंचाना चहाता था। इसलिए उसने इस महत्वकांक्षी उद्देश्य
को पूरा करने के लिए भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया था।
6. नादिर शाह के
दूतों को भारत में रोकना- 1737 में नादिर शाह द्वारा भेजे गये
दूतों को एक साल तक दिल्ली में रोके जाने की घटना से वह अपमानित महसूस किया।
7. धन की लालसा- नादिर शाह भारत की आर्थिक समृद्धि
से प्रभावित था। अन्य आक्रमणकारियो की तरह यह भी भारत से लूट के द्वारा धन प्राप्त
करना चाहता था।
8. काफिरों को
दण्डित करना- सैनिकों में
उत्साह पैदा करने के लिए नादिर शाद ने काफिरों को दण्डित करने जैसी बात कही थी।
विशेषकर मराठों के सदर्भ में।
9. मुगल अमीरों का
षणयंत्र- कुछ अमीरों
(अधिकारी) द्वारा मुगलो के विरुद्ध लगातार षणयंत्र किया गया था । जिस कारण मुगल
सत्ता के स्थाईत्व पर सकट उत्पन्न हुआ था। जैसे सआदत खान
नादिर शाह के आक्रमण का प्रभाव- नादिर शाह ने
सिन्धु नदी के पश्चिम के प्रदेश कश्मीर से सिंध तक के क्षेत्रों को इरान मे मिला
लिया। उसके आक्रमण से मुगल साम्राज्य की शक्ति और कमजोर हुई। भारत-छोटे-छोटे
राज्यों में बटने लगा मराठों की शक्ति बढी सिक्खों कीं शक्ति का विस्तार हुआा।
यूरोपिय कंपनियों ने इसका लाभ उठाते हुए अपनी गतविधियों को और प्रभावशाली बनाया।
निष्कर्ष: उत्तर मुगल काल
उत्तर मुगल काल (1707-1857) मुगल साम्राज्य के पतन और भारत में नई राजनीतिक शक्तियों के उभरने का दौर था। औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद कमजोर मुगल शासकों के कारण साम्राज्य की सत्ता धीरे-धीरे सिमटने लगी। इस दौरान मराठा, राजपूत, सिख, बंगाल, अवध और हैदराबाद जैसे क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जबकि अंग्रेज़ों और अन्य यूरोपीय शक्तियों ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली। 1857 की क्रांति के बाद अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर को अंग्रेज़ों ने हटा दिया, जिससे भारत में मुगल शासन का अंत हो गया। इस काल ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की नींव रखी, जिससे आधुनिक भारत के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई।
👉 "इस लेख में हमने उत्तर मुगल काल के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों, राजनीतिक स्थितियों और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर चर्चा की। यह काल भारतीय इतिहास में सत्ता के बिखराव और अंग्रेज़ों के हस्तक्षेप का प्रतीक रहा।"
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प्रश्न - 18 वी शताब्दी के पूर्वाद्ध में उत्तर पश्चिम की तरफ से हुऐ
आक्रमण ने मुगलों की स्थायी शासन व्यवस्था की कमजोरी को पूर्णत उजागर कर दिया।
स्पष्ट करें (250 शब्द 15 अंक)
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