फ्रांसीसी क्रांति | फ्रांस की क्रांति | French Revolution Notes in hindi

 


फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799): यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए नोट्स



भूमिका

फ्रांसीसी क्रांति (1789) विश्व इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी, जिसने न केवल फ्रांस बल्कि पूरे विश्व की राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया। यह केवल एक सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि राजशाही, सामंतवाद और चर्च के प्रभुत्व के खिलाफ एक संगठित विद्रोह था। इस क्रांति ने 'स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व' (Liberty, Equality, and Fraternity) का नारा दिया, जो आज भी आधुनिक लोकतंत्रों का मूल आधार है।


क्रांति के कारण

फ्रांसीसी क्रांति किसी एक कारण का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह वर्षों से जमा हो रहे विभिन्न कारणों का एक विस्फोटक नतीजा थी। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

1. सामाजिक कारण (Social Causes)

·         असमानता पर आधारित समाज: फ्रांसीसी समाज तीन 'एस्टेट्स' (Estates) में विभाजित था:

o    प्रथम एस्टेट (First Estate): इसमें पादरी वर्ग शामिल था। इन्हें विशेषाधिकार प्राप्त थे, ये करों से मुक्त थे और 'टिथ' (Tithe) नामक धार्मिक कर वसूलते थे।

o    द्वितीय एस्टेट (Second Estate): इसमें कुलीन और सामंत वर्ग शामिल था। ये भी करों से मुक्त थे और इन्हें किसानों से विभिन्न प्रकार के सामंती कर वसूलने का अधिकार था।

o    तृतीय एस्टेट (Third Estate): इसमें समाज का शेष 90% से अधिक हिस्सा शामिल था, जिसमें व्यापारी, वकील, किसान, मजदूर और सामान्य नागरिक आते थे। सारा कर का बोझ इसी वर्ग पर था, जबकि इनके पास कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे।

·         मध्यम वर्ग का उदय: तृतीय एस्टेट के भीतर एक शिक्षित और धनी मध्यम वर्ग (बुर्जुआ) का उदय हो चुका था। वे अपनी योग्यता के बावजूद कुलीन वर्ग के समान सम्मान और अधिकार से वंचित थे, जिससे उनमें गहरा असंतोष था।

2. राजनीतिक कारण (Political Causes)

·         निरंकुश और अयोग्य राजशाही: राजा लुई सोलहवाँ (Louis XVI) एक निरंकुश शासक था, लेकिन उसमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव था। वह अपनी पत्नी मैरी एंटोइनेट (Marie Antoinette) के प्रभाव में था, जो फिजूलखर्ची और जनता की समस्याओं के प्रति उदासीनता के लिए कुख्यात थी।

·         प्रशासनिक भ्रष्टाचार: शासन व्यवस्था पूरी तरह से भ्रष्टाचार और अव्यवस्था का शिकार थी। कानून और नियमों में कोई एकरूपता नहीं थी।

·         न्यायिक असंतोष: न्याय प्रणाली महंगी, जटिल और पक्षपातपूर्ण थी। न्यायाधीशों के पद वंशानुगत होते थे।

3. आर्थिक कारण (Economic Causes)

·         दिवालिया होती सरकार: अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में फ्रांस की भागीदारी और शाही परिवार की फिजूलखर्ची के कारण फ्रांस का खजाना लगभग खाली हो चुका था। देश भारी कर्ज में डूबा हुआ था।

·         दोषपूर्ण कर प्रणाली: कर का सारा बोझ तृतीय एस्टेट पर था, जबकि विशेषाधिकार प्राप्त प्रथम और द्वितीय एस्टेट करों से पूरी तरह मुक्त थे। 'टाइल' (Taille) नामक प्रत्यक्ष कर और 'गैबेल' (Gabelle) जैसे अप्रत्यक्ष करों ने आम जनता का जीवन दूभर कर दिया था।

·         खाद्य संकट: 1788-89 में खराब फसल के कारण अनाज की कीमतों में भारी वृद्धि हुई, जिससे भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई।

4. बौद्धिक कारण (Intellectual Causes)

·         प्रबुद्ध विचारकों का प्रभाव: 18वीं सदी के फ्रांसीसी विचारकों ने क्रांति के लिए वैचारिक आधार तैयार किया।

o    जॉन लॉक (John Locke): उन्होंने राजा के दैवीय अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया।

o    मॉन्टेस्क्यू (Montesquieu): अपनी पुस्तक "द स्पिरिट ऑफ द लॉज" (The Spirit of the Laws) में उन्होंने 'शक्ति के पृथक्करण' (Separation of Powers) का सिद्धांत दिया, जो फ्रांसीसी क्रांति का एक प्रमुख आधार बना।

o    रूसो (Rousseau): अपनी पुस्तक "द सोशल कॉन्ट्रैक्ट" (The Social Contract) में उन्होंने 'जनता की संप्रभुता' (Popular Sovereignty) का विचार प्रस्तुत किया। उनका नारा "मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, लेकिन वह हर जगह जंजीरों में जकड़ा हुआ है" अत्यंत प्रभावशाली साबित हुआ।

o    वॉल्टेयर (Voltaire): उन्होंने चर्च के भ्रष्टाचार और धार्मिक असहिष्णुता पर कड़ा प्रहार किया।

5. तात्कालिक कारण (Immediate Cause)

·         एस्टेट्स-जनरल का अधिवेशन: आर्थिक संकट से उबरने के लिए नए कर लगाने हेतु लुई सोलहवें ने 1789 में 175 वर्षों के बाद एस्टेट्स-जनरल (एक प्रकार की फ्रांसीसी संसद) का अधिवेशन बुलाया। इसमें मतदान के तरीके पर विवाद हो गया। तृतीय एस्टेट ने 'प्रति व्यक्ति एक वोट' की मांग की, जबकि पहले दो एस्टेट 'प्रति एस्टेट एक वोट' चाहते थे। मांग अस्वीकार होने पर तृतीय एस्टेट ने स्वयं को 'नेशनल असेंबली' घोषित कर दिया।


क्रांति के प्रमुख चरण

1.      नेशनल असेंबली (1789-1791):

o    टेनिस कोर्ट की शपथ (20 जून, 1789): तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधियों ने पास के एक टेनिस कोर्ट में संविधान बनाने तक एक साथ रहने की शपथ ली।

o    बास्तील का पतन (14 जुलाई, 1789): गुस्साई भीड़ ने बास्तील के किले (जो शाही निरंकुशता का प्रतीक था) पर हमला कर दिया। यह क्रांति की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।

o    मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा (अगस्त 1789): इसमें जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और सुरक्षा के नैसर्गिक अधिकारों को मान्यता दी गई।

o    संविधान का निर्माण (1791): फ्रांस को एक संवैधानिक राजतंत्र बनाया गया और राजा की शक्तियों को सीमित कर दिया गया।

2.      आतंक का राज (Reign of Terror, 1793-1794):

o    राजा लुई सोलहवें को देशद्रोह के आरोप में गिलोटिन (फांसी) पर चढ़ा दिया गया।

o    मैक्समिलियन रोबेस्पेयर के नेतृत्व में जैकोबिन्स ने सत्ता संभाली।

o    क्रांति के दुश्मनों को खत्म करने के नाम पर हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। यह क्रांति का सबसे कट्टर और हिंसक चरण था।

3.      डायरेक्टरी का शासन (1795-1799):

o    रोबेस्पेयर के पतन के बाद, पांच सदस्यों वाली एक 'डायरेक्टरी' ने शासन संभाला।

o    यह शासन राजनीतिक रूप से अस्थिर और कमजोर था, जिससे सेना का प्रभाव बढ़ने लगा।

4.      नेपोलियन का उदय (1799):

o    डायरेक्टरी की अस्थिरता का लाभ उठाकर जनरल नेपोलियन बोनापार्ट ने तख्तापलट कर दिया और सत्ता पर काबिज हो गया। इसी के साथ फ्रांसीसी क्रांति का अंत माना जाता है।


क्रांति के परिणाम और प्रभाव

फ्रांस पर प्रभाव:

·         राजशाही और सामंतवाद का अंत: क्रांति ने फ्रांस से वंशानुगत राजशाही और सामंती विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया।

·         राष्ट्रवाद का उदय: क्रांति ने एक संप्रभु फ्रांसीसी राष्ट्र की भावना को मजबूत किया।

·         धर्मनिरपेक्षता: चर्च की संपत्ति जब्त कर ली गई और उसे राज्य के अधीन लाया गया।

·         सामाजिक सुधार: सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू किए गए।

विश्व पर प्रभाव:

·         लोकतांत्रिक विचारों का प्रसार: 'स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व' के नारे ने दुनिया भर के राष्ट्रवादी और लोकतांत्रिक आंदोलनों को प्रेरित किया।

·         राष्ट्रवाद का प्रसार: क्रांति ने यूरोप के अन्य देशों जैसे जर्मनी और इटली में राष्ट्रीय एकीकरण की भावना को बल दिया।

·         सामंतवाद का पतन: इसने यूरोप के अन्य हिस्सों में भी सामंती व्यवस्था के पतन की प्रक्रिया को तेज किया।

·         मानवाधिकारों की घोषणा: इसने आधुनिक मानवाधिकार अवधारणाओं की नींव रखी।

भारत पर प्रभाव:

·         फ्रांसीसी क्रांति का भारत पर सीधा प्रभाव तो नहीं पड़ा, लेकिन इसके विचारों ने भारतीय बुद्धिजीवियों और समाज सुधारकों को गहराई से प्रभावित किया।

·         टीपू सुल्तान ने फ्रांसीसी क्रांति से प्रेरणा लेकर श्रीरंगपट्टनम में 'स्वतंत्रता का वृक्ष' लगाया और जैकोबिन क्लब का सदस्य बना।

·         राजा राम मोहन राय जैसे 19वीं सदी के समाज सुधारक स्वतंत्रता और अधिकारों के इन नए विचारों से बहुत प्रभावित थे।

·         भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, स्वतंत्रता, समानता और राष्ट्रवाद के फ्रांसीसी आदर्शों ने कई स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।


निष्कर्ष

फ्रांसीसी क्रांति केवल फ्रांस के इतिहास की ही नहीं, बल्कि विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। इसने राजतंत्र की दैवीय वैधता को चुनौती दी और यह स्थापित किया कि संप्रभुता का अंतिम स्रोत जनता है। यद्यपि क्रांति अपने कई आदर्शों को तत्काल प्राप्त करने में विफल रही और आतंक के राज तथा नेपोलियन की तानाशाही में परिणत हुई, तथापि इसने आधुनिक विश्व के निर्माण के लिए स्वतंत्रता, लोकतंत्र, राष्ट्रवाद और मानवाधिकारों के जो बीज बोए, वे आज भी फल-फूल रहे हैं। यूपीएससी के दृष्टिकोण से, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कैसे इस एक घटना ने वैश्विक राजनीति की दिशा बदल दी।

 

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